लेखनी प्रतियोगिता -22-Apr-2024" ना क्यों "
ना क्यों..??
'ना' शब्द जिस भी शब्द के साथ जुड़ जाता है एक उदासी एक नाकामी और जीवन को नीरस सा महसूस कराता है.......!!
लेकिन न के बाद जो उम्मीद है वह कहीं ना कहीं हमारे दिल के ही किसी कोने में दबी होती है जिसको हम हमेशा नज़र अंदाज करते रहते हैं उसी 'ना-उम्मीद' के बीच उम्मीद की लौ को हम अपनी ना समझी नादानी की वजह से महसूस नहीं कर पाते......उस वक्त हमें कहीं और नहीं अपने मन के द्वार खोलने की जरूरत होती है, पर हम दुनिया की तरफ देखते हैं और अपने आप को भूल जाते हैं हम मन के अंदर झांकने का तनिक भी प्रयास नहीं करते यदि हम सारी दुविधा सारी नाकामी को एक ओर दर किनार करके जो पतली सी हृदय के अंदर आशा की लौ है उसको जलाए रखने का यदि प्रयत्न करें, तो वो एक ना एक दिन धीरे-धीरे प्रचंड होकर उस आशा और उम्मीद में तब्दील हो जाएगी जो हमारी सारी नाकामी हमारी सारी ना उम्मीद को खत्म कर जाएगी......
'कहावत है कि बूंद बूंद से ही गागर भर जाती है।'
यह तो हमारे मन का कोना है फिर क्यों नहीं हम अपनी सारी ऊर्जा को इकट्ठा करके उसे और अपनी सोच को सकारात्मक बनाकर उस दिशा की ओर अग्रसर करे जहां सिर्फ और सिर्फ उगता हुआ सूरज हमारा रास्ता देखता है बस हमें जरा से प्रयास और हिम्मत की आवश्यकता होती है जो हमारे अंदर भगवान अंनत भरकर भेजता है। लेकिन हम उसको और उसकी शक्ति को पहचानने में असमर्थ से रहते हैं, और यही पर नादानी कर जाते हैं और ना उम्मीद में घिरे अपने आप को खोजते रहते हैं जबकि ईश्वर हमेशा एक दरवाजा बंद करता है तो दूसरा उम्मीद का दरवाजा कहीं ना कहीं खुला रखता है बस हमारी नज़रों को उठाने की देरी होती है।है।
मधु गुप्ता "अपराजिता"
✍️✍️22/4/2024
Babita patel
28-Apr-2024 10:58 AM
Awesome
Reply
Mohammed urooj khan
27-Apr-2024 12:09 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
Reply